आलू की खेती कैसे करें?
Aalu ki kheti kaise karen- आधुनिक मानव सभ्यता में उन खाद्य पदार्थों का अस्तित्व बढ़ गया है, जिनमें अपनी कठोरता, भंडारण की क्षमता और पोषणता अधिक हो। जो लंबे समय तक खराब न हो, स्वास्थ्य के लिए अच्छी हो और स्वाद में बेहतर हो। इस तरह के खाद्य पदार्थ लंबे समय से मानव जीवन को सरल बना रहे हैं।
आलू हमारे पूर्वजों के लिए अपनी उपयोगिता साबित करने में कामयाब रहे। हमारे पूर्वजों ने इसकी खेती और पोषण किया, जिससे आज भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। संभाल कर की गई खेती ने हमारे इतिहास के पिछले 10,000 वर्षों के दौरान आलू के अस्तित्व को बचाकर रखा है।
यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अस्तित्व में आने के सदियों बाद, आलू दुनिया के व्यंजनों के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक बन गया है। आज आलू लगभग पूरी दुनिया में चौथी सबसे बड़ी खाद्य फसल (मक्का, चावल और गेहूं के बाद) बनकर उभरा है। वर्तमान समय में व्यापक शोध और सदियों से चयनात्मक प्रजनन ने आज हमारे पास हजार से अधिक विभिन्न प्रकार की आलू की किस्में हैं, जो पूरी दुनिया में उगाई जाती है।
सबसे ज्यादा कमाई वाली फसल कौन सी है?
इतनी ज्यादा मांग होने के कारण किसानों के लिए आलू की खेती करना हमेशा फायदे का सौदा रहता है, बस इसे एक सुव्यवस्थित तरीके से करना जरूरी है। आज के इस आर्टिक्ल में हम आलू की खेती कैसे करें (Aalu ki kheti kaise karen)? के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे।
Aalu ki kheti kaise karen?
जलवायु
भारत में आलू की खेती शीत ऋतु में की जाती है। आमतौर पर दुनिया के अन्य देशों में इसकी फसल 180 दिन में पककर तैयार होती है, जहां दिन की अवधि 14 घंटे होती है। लेकिन भारत में 10-11 औसत घंटे दिन अवधि वाले समय में इसकी खेती करना सबसे लाभदायक माना जाता है।
लेकिन शीत ऋतु में जब सुबह का कोहरा पड़ता है, तो वो फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इस कारण भारत के किसानों को नवंबर के पहले सप्ताह में इसकी बुवाई करने की सलाह दी जाती है। ताकि जब कोहरे का समय आए तो पौधा परिपक्वता हासिल कर लें।
हल्दी की खेती कैसे की जाती है?
चमकती धूप, 60-70% आर्द्रता और संतुलित तापमान आलू की बढ़ती फसल और बेहतर वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। आलू के बीजों के बेहतर अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री और कंद बनने के समय 18-20 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। 28 डिग्री से अधिक का तापमान फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है।
क्योंकि यह ट्यूबराइजेशन में बाधा डालता है, जो उच्च श्वसन दर के कारण प्रकाश संश्लेषण द्वारा उत्पादित कार्बोहाइड्रेट कंद में संग्रहीत होने के बजाय खपत होते हैं। अधिक नमी, बादल छाए रहने और बारिश विभिन्न बीमारियों को फैलने में मदद करती हैं। इस कारण मैदानी लोग सर्दियों में और पहाड़ी लोग गर्मियों में इसकी खेती करते हैं।
मिट्टी
आलू की खेती आमतौर पर रेतीली और दोमट्ट मिट्टी पर की जाती है, लेकिन इसके लिए चिकनी मिट्टी भी उपयुक्त रहती है। मिट्टी का चयन करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखान चाहिए कि खेत में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था हो। जब पौधे का विकास होता है तो खेत में पानी का खड़ा रहना नुकसानदायक साबित होता है।
क्षारीय या लवणीय मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती है। लेकिन 5 से 6.5 की पीएच रेंज वाली अम्लीय मिट्टी अच्छी तरह से अनुकूल होती है क्योंकि अम्लीय स्थितियां स्कैब रोग को खत्म करती हैं। अधिक पैदावार के लिए मिट्टी भुरभुरी, अच्छी तरह से वातित और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होनी चाहिए।
गन्ने की वैज्ञानिक खेती करने का सबसे बढ़िया तरीका
खेत की तैयारी
आलू की खेती के लिए खेत की अच्छे से बुवाई बहुत जरूरी है। जिसके लिए आपको सबसे पहले पूरे खेत में जितनी हो सके उतनी गोबर की खाद का छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए। जुताई इस तरीके से करनी चाहिए ताकि पूरा खेत समतल बन जाएँ।
खेत की तकरीबन 30 सेंटीमीटर गहराई तक जुताई करना अच्छा रहता है। इस तरह से 3-4 बार जुताई करनी चाहिए और बुवाई से पहले मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखें। जुताई के बाद दो या तीन बार हैरोिंग करें। इस तरह से तैयार किया गया खेत आलू की पैदावार को बढ़ाता है।
बुवाई का समय और प्रजातियाँ
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बुवाई का समय और प्रजातियाँ अलग-अलग प्रकार की है। जिसे नीचे इस सारणी में विस्तार से दर्शाया गया है-
क्र. सं. | भौगोलिक क्षेत्र | फसल की अवधि | बुवाई का समय | प्रमुख प्रजातियाँ |
1. | उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र | 90 दिन से कम | सितंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर जनवरी के पहले सप्ताह तक | कुफ़री अशोक, कुफ़री चन्द्रमुखी, कुफ़री जवाहर, कुफ़री पुखराज, कुफ़री लीमा |
2. | उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र | 90-110 दिन | अक्टूबर के पहले सप्ताह से लेकर जनवरी के मध्य तक | कुफ़री आनंद, कुफ़री अरुण, कुफ़री बादशाह, कुफ़री ज्योति, कुफ़री गौरव, कुफ़री मोहन, कुफ़री गंगा, कुफ़री नीलकंठ, कुफ़री सतलज, कुफ़री गरिमा |
3. | पश्चिमी-मैदानी मध्य क्षेत्र | 90 दिन से कम | मध्य अक्टूबर से मध्य जनवरी तक | कुफ़री चन्द्रमुखी, कुफ़री जवाहर |
4. | पश्चिमी-मैदानी मध्य क्षेत्र | 90-110 दिन | मध्य अक्टूबर से फरवरी के पहले सप्ताह तक | कुफ़री आनंद, कुफ़री अरुण, कुफ़री बादशाह, कुफ़री बहार, कुफ़री चिप्सोना-1, 2,3 , कुफ़री पुष्कर, कुफ़री सदाबहार, कुफ़री सूर्य, कुफ़री सतलज, कुफ़री गरिमा |
5. | पश्चिमी-मैदानी मध्य क्षेत्र | 110 दिन से ज्यादा | मध्य अक्टूबर से मध्य फरवरी तक | कुफ़री सिंदूरी |
6. | उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र | 90 दिन से कम | अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर मध्य फरवरी तक | कुफ़री अशोक, कुफ़री चन्द्रमुखी |
7. | उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र | 90-110 दिन | अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर फरवरी के अंतिम सप्ताह तक | कुफ़री अरुण, कुफ़री मोहन, कुफ़री बहार, कुफ़री लालिमा, कुफ़री चिप्सोना-1, 2,3 , कुफ़री पुष्कर, कुफ़री सदाबहार, कुफ़री सूर्य, कुफ़री सतलज, कुफ़री गरिमा, कुफ़री ज्योति, कुफ़री कंचन, कुफ़री ललित |
8. | उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र | 110 दिन से ज्यादा | अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर फरवरी के अंत तक | कुफ़री सिंदूरी |
9. | पठारी क्षेत्र | 90 दिन से कम | नवंबर से जनवरी | कुफ़री चन्द्रमुखी, कुफ़री जवाहर, कुफ़री लवकार |
10. | पठारी क्षेत्र | 90-110 दिन | नवंबर से फरवरी | कुफ़री पुखराज, कुफ़री बादशाह, कुफ़री सूर्य, कुफ़री ज्योति, कुफ़री गरिमा |
बुवाई के समय बीज दर
आलू की बीज दर आलू की किस्म, फसल अवधि, बीज के आकार और वजन पर निर्भर करती है। बीज के आकार और दूरी के आधार पर प्रति हेक्टेयर बीज दर नीचे दी गई है-
फसल का प्रकार | बीज का आकार (व्यास सेमी में) | पौधों की दूरी (सेमी में) | बीज की मात्रा क्विंटल/हेक्टेयर |
कम अवधि की फसल | 2.5 – 3.5 | 45 x 15 | 10 – 15 |
मध्यम अवधि की फसल | 3.0 – 4.0 | 60 x 25 | 25 – 30 |
लंबी अवधि की फसल | 4.0 – 5.0 | 50 x 20 | 20 – 22 |
खाद
लगभग हर फसल की अच्छी उपज के लिए गोबर की खाद सबसे उत्तम मानी जाती है। लेकिन आलू की खेती में इसके साथ रासायनिक उर्वरकों का भी उपयोग किया जाता है। पॉलीसल्फेट उर्वरकों का उपयोग करना। यहाँ हम कुछ पॉलीसल्फेट उर्वरक के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनका उपयोग आलू की खेती में किया जाता है।
पॉलीसल्फेट सल्फर से बना एक उर्वरक है, जिसमें मुख्य तौर पर कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर और पौटेशियम शामिल होते हैं। यह आलू के कंद बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चूंकि पौटेशियम आलू की फसल द्वारा सबसे ज्यादा अवशोषित किए जाने वाला पदार्थ है, जो फसल को कई बीमारियों और सूखे के प्रभाव से बचाता है।
इसके अलावा सल्फर किसी भी फसल में प्रोटीन निर्माण को बढ़ाता है, जिस कारण आलू की खेती में सल्फर का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। साथ ही इसके उपयोग से स्कैब जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है, जो आमतौर पर आलू की फसल में देखने को मिलती है। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से पॉलीसल्फेट का इस्तेमाल कृषि विशेषज्ञों के निर्देशानुसार कर सकते हैं।
बुवाई
आलू की खेती के लिए वैसे सबसे अच्छा महिना अक्टूबर माना जाता है, लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में यह अलग-अलग समय पर होता है। बुवाई के समय मौसम थोड़ा हल्का और ठंडा होना चाहिए। कंदों को लगाते समय इनके बीच की दूरी आकार पर निर्भर करती है। अगर कंद बड़े हैं तो दूरी भी ज्यादा होगी और इनकी बुवाई की मात्रा भी कम होगी।
कंदों की बुवाई करने से पहले उनका रासायनिक उपचार करना बहुत जरूरी होता है। कंदों को 2 ग्राम थाइरम, 1 ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर पानी के घोल में डुबोकर रखना चाहिए। 20 से 30 मिनट के बाद इनको बाहर रखकर सूखा देने से इनके ग्रोथ करने की प्रायिकता बढ़ जाती है।
सिंचाई
बुवाई करने के बाद थोड़ी हल्की सिंचाई करनी अच्छा माना जाता है। लेकिन अगर आपके पास पानी की कमी है तो न करने से भी कोई ज्यादा नुक्सान नहीं होगा। समान्यतः आलू की खेती में 10-15 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बुवाई के एक सप्ताह बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए, इसके बाद लगातार 7-10 दिनों के अंतराल में पानी देना आलू की फसल के लिए अच्छा माना जाता है।
जैसे-जैसे फसल पकती जाए, वैसे-वैसे सिंचाई का अंतराल ज्यादा कर देना चाहिए। फसल पकने से 15 दिन पूर्व कोई सिंचाई नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से आलू की खुदाई अच्छे से नहीं हो पाएगी।
खरपतवार नियंत्रण
आलू की खेती में निराई (खरपतवार निकालना) और गुड़ाई सबसे अहम पहलू माना जाता है। इसके अलावा इसी क्रिया के दौरान पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ाना अच्छी पैदावार के चान्स को बढाता है। बुवाई के 1 महीने बाद जब पौधे 10 सेमी. के हो जाए तो निराई-गुड़ाई की प्रक्रिया को करना उत्तम माना जाता है।
जब खरपतवार पूरी तरह से निकल जाए तो कंदों की जड़ों में मिट्टी को चढ़ाना आवश्यक होता है, क्योंकि इससे सूरज की रोशनी से पौधों को बचाया जा सकता है। इस क्रिया के 3-4 दिन एक हल्की सिंचाई कर देने से मिट्टी जड़ों में जम जाती है, जिससे मृदा अपरदन जैसी बड़ी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
खुदाई
जब पौधों के पत्ते सूखने लग जाए तो समझ लेना चाहिए कि अब आलू खुदाई के लिए तैयार है। आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की खुदाई हाथों से और मैदानी इलाकों में मशीनों से की जाती है। हाथ से खुदाई करने पर आपको बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है। जबकि मशीन से खुदाई में ज्यादा समय नहीं लगता है।
संरक्षण
भारत में आलू की खुदाई फरवरी के महीने में होती है। जिसके बाद गर्मियों का आगाज हो जाता है, किसान इस गर्मी से आलू को बचाने के लिए अलग-अलग प्रकार के तरीके अपनाते हैं। इन तरीकों को ही आलू सरंक्षण की विधि कहा जाता है।
आलू को बचाने के लिए ठंडी जगह पर भंडारण किया जाता है। जिस जगह आलू का भंडारण किया जाता है, वहाँ का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए। साथ ही उस जगह पर सूर्य की रोशनी नहीं जानी चाहिए। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में किसान इसका अलग-अलग प्रकार से भंडारण करते हैं।
निष्कर्ष
तो दोस्तों यह था हमारा आज का आर्टिक्ल आलू की खेती कैसे करें? अगर आपको इससे संबधित और कोई जानकारी चाहिए तो आप हमें comment कर बता सकते हैं। आपका comment हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा आप किसी अन्य प्रकार के सवाल हमसे चाहते हैं तो हमें हमारे social media platforms पर मैसेज कर सकते हैं।