गन्ने की खेती कैसे करें? (Ganne Ki Kheti Kaise Kare)

गन्ने की खेती कैसे करें? (Ganne Ki Kheti Kaise Kare)

गन्ने की खेती कैसे करें? (Ganne Ki Kheti Kaise Kare)- कृषि आधारित उद्योगों में चीनी उद्योग का टेक्सटाइल उद्योग के बाद दूसरा स्थान है। चीनी उद्योग में गन्ने की फसल का मुख्य स्थान है। चीनी हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का एक मुख्य खाद्य पदार्थ है। इसका उपयोग प्रत्येक घर में किया जाता है।

इसके अलावा गन्ने का रस भी स्वास्थय के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसके रस में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व पाएँ जाते हैं, जो हमारी गर्मी से बचाव करते हैं। यह शूगर रोगियों के लिए उपयोगी होता है। इसमें विभिन्न प्रकार के गुणकारी पोषक तत्व पाए जाते हैं।

इन पोषक तत्वों की बात करें तो इसमें कैल्सियम, फोस्फोरस, आयरन इत्यादि पाए जाते हैं। यह इंसान के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इसके अलावा यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। गन्ने के ज्यूस में पेट की बीमारियों को खत्म करने की क्षमता होती है।

Ganne Ki Kheti Karne ka sabse badhiya tarika

भारत में गन्ने की खेती आदिकाल से की जा रही है। गन्ने की खेती नगदी खेती कहलाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में गन्ने का महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व में ब्राज़ील के बाद भारत का गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान है। इसके अलावा उत्तरप्रदेश देश में सबसे ज्यादा गन्ने का उत्पादन करता हैं।

साथ ही बिहार, हरियाणा, पंजाब और पश्चिम बंगाल भी प्रमुख उत्पादक राज्य है। विश्व में गन्ने के मुख्य उत्पादक देश ब्राज़ील, भारत, क्यूबा, पाकिस्तान, चीन, मैक्सिको और फिलीपींस प्रमुख है।

गन्ने का वैज्ञानिक नाम Saccharum officinarum (सुगरेन्स औफिसीनेरम) है। एवं यह ग्रेमिनी परिवार का पौधा है, इसे अँग्रेजी में Sugarcane कहते हैं। आइए आज हम जानते हैं कि उन्नत तरीके से गन्ने की खेती कैसे करें? (Ganne Ki Kheti Kaise Kare)?

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गन्ने की जातियाँ

सेकेरम ऑफिसेनेरस- इसे नोबल गन्ना या उष्ण गन्ना भी कहते हैं। इसमें शर्करा की मात्रा अधिक पाई जाती है, इस कारण इससे अधिक मात्रा में चीनी बनाई जाती है।

सेकेरम बारबेरी- इसे भारतीय गन्ना कहते हैं, क्योंकि इसका भारत में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। यह पतला, छोटा एवं मीठा होता है।

सेकेरम साइनेन्सीस- इसे चाइनीज गन्ना कहते हैं। इसकी पत्तियाँ चौड़ी होती है, आकार में यह पतला और लंबा होता है। अत्यधिक मीठा होने के कारण इसका उपयोग ज्यूस बनाने में किया जाता है।

जंगली जातियाँ- सेकेरम स्पोन्टेरियम और सेकेरम रोबस्टम गन्ने की मुख्य दो जंगली जातियाँ है। इस जाती के गन्ने वर्षावनों में भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

गन्ने की खेती कैसे करें? (Ganne Ki Kheti Kaise Kare)

जलवायु कैसे होनी चाहिए?

गन्ने की फसल उष्ण जलवायु में पलने वाली फसल है। इसके अलावा गन्ना समशीतोष्ण जलवायु में भी आसानी से उगाया जा सकता है। इसके लिए उपयुक्त तापमान 25 डिग्री से 32 डिग्री तक होता है। परंतु 15 डिग्री सेन्टीग्रेड से नीचे तथा 45 डिग्री से ऊपर का तापमान असहनीय होता है।

गन्ने के पौधे के विकसित होने में अधिक से अधिक प्रकाश की आवश्यकता होती है। गन्ने के पकते समय मौसम शुष्क ठंडा तथा पाले रहित रहना आवश्यक है।

मृदा एवं खेती की तैयारी

अच्छी जलनिकासी वाली दोमट्ट मिट्टी गन्ने के लिए सबसे उपयुक्त मृदा है। गन्ने की फसल काली, दोमट्ट सिल्ट तथा बलुई सिल्ट मृदा में भी आसानी से लगाई जा सकती है। फसल की वृद्धि के लिए 50-60% मिट्टी में आद्रता की आवश्यकता पड़ती है।

खेती को तैयार करने के लिए अच्छे से मिट्टी को पलटने वाले हल की आवश्यकता पड़ती है। पलाऊ इसके लिए सबसे असरदार हल साबित होता है। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से इन हलों का प्रयोग कर सकते हैं। बस इस बात का खासकर ध्यान रखें कि खेत की जुताई अच्छे से हो जाए।

एक बार पलाऊ और इसके बाद साधारण हल से 2-3 बार जुताई कर देनी चाहिए। इसके बाद मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए, ताकि इसमें अच्छे से गन्ने की बुवाई और रोपाई की जा सके।

तो यह है सबसे ज्यादा कमाई वाली फसल

उन्नत किस्में

गन्ने की खेती कैसे करें? (Ganne Ki Kheti Kaise Kare) सवाल के लिए हम आज आपको कुछ उन्नत किस्में बताने जा रहे हैं, जिसके इस्तेमाल से किसान पिछले कुछ वर्षों में अधिक से अधिक गन्ने का उत्पादन कर रहे हैं।

को. 89003

इस किस्म के गन्ने से ज्यादा चिन्नी प्राप्त होती है। यह एक अगेती किस्म है, दो क़िस्मों से मिलकर बनाया गया है। ज्यादा चिन्नी पैदा करने के इसी गुण के कारण इसे सबसे पहले 1997 में किसानों के समक्ष पेश किया गया था। पूरे देश में गन्ने के कुल उत्पादन का 11% को. 89003 से प्राप्त किया जाता है।

को. 98014

2007 में राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में इस किस्म के गन्ने की खेती करने के लिए अनुमति दी गई थी। इस किस्म के गन्ने लंबे और मध्यम पतले होते हैं। इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि इसमें पोरी फटने की समस्या नहीं पाई जाती हैं। छिलका अत्यधिक कठोर होने के कारण इस पर कीटों का प्रभाव बहुत कम पड़ता है।

को. 0118

इस किस्म के गन्ने दिखने में को. 98014 की तरह होते हैं, परंतु यह मध्यम बैंगनी रंग के होते हैं। 2009 में इस किस्म की खेती के लिए सरकार द्वारा मान्यता दी गई थी। इससे बनने वाला गुड़ हल्के पीले रंग का होता हैं, साथ में इसमें रेशे की मात्रा 12.78% होती है। यह एक ऐसी किस्म है जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है।

को. 0238

को. 0238 के गन्ने आकार में लंबे और मध्यम मोटाई के होते हैं। इस किस्म के गन्ने धूसर भूरे रंग के होते हैं, जिस कारण इससे बनने वाले गुड़ का रंग भी भूरा होता है। इसमें रेशे की 13.05% मात्रा पाई जाती है। हाल ही में हुए शोधों से पता चला है कि यह किस्म हल्की सूखी, जलभराव और लवणीय भूमि में अच्छा उत्पादन देती है।

को. 0124

गन्ने की खेती में इस किस्म की फसल मध्यम देरी से पकती है। 2010 में केन्द्रीय समिति की सिफ़ारिश पर इसके उत्पादन की स्वीकृति दी गई थी। इसमें रेशे की लगभग 12.65% मात्रा पाई जाती है, साथ ही इससे बनने वाले गुड़ का रंग भूरा होता है।

को. 0239

को. 0239 एक अगेती किस्म है, जिससे अन्य क़िस्मों की तुलना में ज्यादा चीनी प्राप्त होती है। गन्नों की लंबाई और मोटाई अत्यधिक होने के कारण इनमें काफी रश पाया जाता है। इस किस्म से हल्के पीले रंग का गुड़ प्राप्त होता है। इसमें 12.79% रेशे की मात्रा पाई जाती है।

को. 0237

इसकी पोरिया बेलनाकार और पीले रंग की होती है। अन्य क़िस्मों की तरह इसके गन्ने लंबे और मध्यम मोटाई के होते हैं। इसमें रेशे की लगभग 13% मात्रा पाई जाती है। यह लाल सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी है, जिस कारण इसे सबसे अच्छी क़िस्मों में से एक माना जाता है। यह किस्म चीनी के पैदावार में चौथे और गन्ने के उत्पादन में पांचवे स्थान पर है।

बीज का चुनाव व उपचार

गन्ने का बीज हमेशा एक अच्छी नर्सरी से लेना चाहिए। अगर ऐसा संभव न हो तो निरोगी व संतुलित उर्वरक से उगाई गई 8-10 माह पुरानी गन्ने की फसल के बीज गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त होते हैं। बीज हमेशा 100% आनुवांशिक शुद्धता वाला होना चाहिए।

विभिन्न बीज जनित रोगों से नियंत्रण के लिए इसके बीजों को उपचारित करते हैं और फफूंदनाशक दवाओं जैसे- एगलाल 1.23 किलोग्राम या एरीटान 625 ग्राम, 250 लीटर पानी में मिलाकर बीजों को अच्छे से उपचारित करते हैं।

इसके अलावा गन्ने की खेती में दीमक व कँसुआ की रोकथाम के लिए हैप्टाक्लोर दवा का उपयोग करना चाहिए। 1000 लीटर पानी में 6.25 लीटर दवा डालकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए।

बिजाई की उत्तम विधि

गन्ने की बिजाई के लिए बसंत काल में मध्य फरवरी से मार्च के अंत तक सबसे उपयुक्त समय होता है। इस समय तापमान ज्यादा न होने के कारण पौधों को ऊगने में आसान्नी होती है। शरदकालीन समय में गन्ने की बिजाई सितंबर और अक्टूबर के मध्य होती है।

बिजाई करते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेमी होनी चाहिए, जिस पर प्रति मीटर 12 गन्ने लगाने चाहिए। इस तरह से एक एकड़ में 38-40 क्विंटल गन्ने की आवश्यकता पड़ती है।

सबसे उपयुक्त पोषक तत्व कौनसे है?

गन्ने की खेती (Ganne ki kheti) में अत्यधिक उत्पादन पाने के लिए पोषक तत्वों का अच्छे से ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए आप प्रति हेक्टेयर 200 किलो नाइट्रोजन, 55 किलो फास्फोरस, 300 किलो पोटेशियम, 30 किलो सल्फर, 1.5 किलो मैंगनीज आदि का उपयोग कर सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि आपको इन्हें एक बार में ही खेत में मिलाना है। आपको समय-समय पर इन तत्वों का खेत में उन्नत विधि से छिड़काव करना होता है। इसके अलावा यूरिया, डीएपी को बिजाई के 50 दिन बाद डालना चाहिए, ताकि पौधों की वृद्धि में किसी प्रकार की समस्या न हो।

सिंचाई का सही तरीका कौनसा है?

किसी भी फसल के लिए एक संतुलित सिंचाई हमेशा अच्छी रहती है। इसी प्रकार गन्ने की खेती (Ganne Ki Kheti) के लिए भी अच्छे से सिंचाई करना आवश्यक होता है। इसके लिए नाली विधि से की गई सिंचाई उपयुक्त और कारगर साबित होती है।

Ganne Ki Kheti Kaise Kare

इसके अलावा आजकल कई किसान टपक विधि से सिंचाई कर रहे हैं। ऐसा करने से गन्ने की खेती (ganne ki kheti) में दो फायदे हो सकते हैं। सबसे पहला फायदा यह है कि इससे तकरीबन 40% पानी की बचत की जा सकती है। दूसरा फायदा यह है कि ऐसा करने से गन्ने की पैदावार में 20-25% की वृद्धि होती है।

टपक सिंचाई विधि में किसान पानी के साथ नाइट्रोजन और अन्य उर्वरकों का भी उपयोग करते हैं। जिससे पौधों की वृद्धि काफी अच्छे तरीके से होती है। साथ ही इससे नाइट्रोजन की उतनी ही खपत होती है, जितनी पौधों को जरूरत होती है।

अगर आप टपक विधि से सिंचाई नहीं करना चाहते हैं तो आप सीधी सिंचाई भी कर सकते हैं। इसके लिए मानसून आने से पहले प्रत्येक 10 दिन के अंतराल में और मानसून आने के बाद 25 दिन के अंतराल में सिंचाई कर सकते हैं। मानसून के दिनों में आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?

खरपतवार प्रत्येक फसल के लिए एक ऐसी समस्या है जो फसल को बहुत नुकसान पहुंचाती है। इसलिए किसान सबसे ज्यादा ध्यान खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान देते हैं। इस प्रकार से गन्ने की खेती (Ganne ki kheti) में भी खरपतवार का नियंत्रण बहुत आवश्यक है।

गन्ने की बिजाई करने से पहले अच्छे से जुताई करने से काफी हद तक खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है। हालांकि कुछ खेत ऐसे होते हैं, या जमीन ऐसी होती है जहां खरपतवार की काफी समस्या रहती है। इस समस्या के समाधान के लिए आप जुताई के तुरंत बाद सिंचाई कर दें। ऐसा करने से खरपतवार नियंत्रण में आ जाएगा।

अगर फिर भी खरपतवार दिखाई दे तो रासायनिक पदार्थों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए पैराक्वाट, ग्लयफोसेट, एट्राजिन, सिंकोर, एलक्लोर आदि रसायनों का अपने क्षेत्र के किसी कृषि विशेषज्ञ की सहायता से छिड़काव करें। इसके अलावा बिजाई के 40-45 दिन बाद कसिए की सहायता से निराई-गुड़ाई करें। हम आपको यही सलाह देते हैं कि आप हाथों से ही खरपतवार को नष्ट करें।

पौधों की जड़ में मिट्टी चढ़ाना

तेज हवा या आँधी से पौधों को बचाने के लिए इनकी जड़ों में मिट्टी चढ़ाई जाती है। आमतौर पर बिजाई के 90 दिन बाद गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ाई जाती है। इस समय एक बार के लिए पौधों की ऊंचाई के हिसाब से हल्की मिट्टी चढ़ाते हैं। लेकिन बाद में पूरी मिट्टी चढ़ा दी जाती है।

गन्ने की फसल का कीटों से रक्षा करना

कीटों के नामलक्षणउपाय
प्ररोह छिद्रकयह कीट गन्ने की फसल को पोरियों के बनने से पहले नुकसान पहुंचाता है। यह गन्ने के निचले भाग में छिद्र बना देता है, जिससे गन्ना कमजोर हो जाता है। यह सामान्य तौर पर मानसून आने से पहले सक्रिय रहता है।बुवाई करते समय क्लोरपायरीफॉस 20, EC तरल कीटनाशी को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
शीर्ष छिद्रकगन्ने के पत्ते निकालने के साथ ही इस कीट का आक्रमण शुरू हो जाता है। यह पत्तियों के मध्य भाग में छिद्र बनाकर पत्तियों को चीर-फाड़ देता है।इसका उपाय बहुत ही सरल है, बस आपको रैनेक्सीपायर 20 EC को पानी में मिलाकर जड़ों में छिड़काव करना चाहिए।
स्तम्भ छिद्रकइस कीट का प्रकोप मानसून के साथ ही शुरू हो जाता है। यह कीट पत्तियों को खाती है और साथ में पोरियों में छिद्र बनाकर गन्ने की खेती को नुकसान पहुंचाता है।वैसे इस कीट का कोई रासायनिक उपाय नहीं है। यह कीट नाइट्रोजन के ज्यादा प्रयोग और जलभराव वाली स्थिति में ज्यादा पनपता है। बस आप इनको नियंत्रण में रखकर इन पर काबू प सकते हैं।
सफ़ेद गिंडारयह कीट गन्ने की जड़ों को खाता है। अक्सर देखा जाता है कि गन्ने की पत्तियाँ पीली पड़ जाती है, वो सब इसी कीट के कारण होता है। इसके ज्यादा प्रभाव से पौधे गिरने लग जाते हैं।मोनोक्रोटोफास या इमिडाक्लोप्रिड को 1 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से इनको नियंत्रित किया जा सकता है।
पायरिलासफ़ेद गिंडार की तरह ही यह कीट पत्तियों के रस को चूसकर उन्हें पीला कर देता है। डायमेथोएट या एसिफेट कीटनाशी का विशेषज्ञ के सुझावों से छिड़काव करें।
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कटाई

गन्ने की फसल की कटाई बहुत ही सावधानीपूर्वक नीचे से करनी चाहिए क्योंकि अगर थोड़ा सा भी हिस्सा जमीन में रह गया तो इससे काफी नुकसान हो जाएगा। गन्ने की फसल की कटाई नवंबर महीने से लेकर मार्च महीने के मध्य करनी चाहिए। इस समय औसत तापमान काफी कम रहता है।

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