हमारे सौरमंडल की सम्पूर्ण जानकारी (Our Solar System in Hindi)

हमारे सौरमंडल की सम्पूर्ण जानकारी

हमारे सौरमंडल की सम्पूर्ण जानकारी- जिस जगह से हमारी पहचान होती है, जहां हमारा परिवार रहता है। उसे हम घर कहते है, इस दुनिया में किसी का कहीं न कहीं घर जरूर होता है। इसी प्रकार हमारी धरती का भी एक घर है, एक परिवार है। धरती के इसी घर या परिवार को हम सौरमंडल कहते है। जिसका मुखिया सूर्य है।

दूसरे शब्दों में कहे तो सूर्य व उसके परिवार को हम सौरमंडल कहते है। हमारे सौरमंडल में 8 ग्रह मौजूद हैं, जिनमें हमारी पृथ्वी भी शामिल है। इन ग्रहों के अलग-अलग उपग्रह भी है, जो इनके चारों ओर चक्कर लगाते हैं। यानी सूर्य के साथ गुरुत्वाकर्षण बल से बंधी वस्तुओं की प्रणाली को सौरमंडल कहते हैं।

यह भी पढ़ें:-

इनके अलावा सौरमंडल में क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, बौने ग्रह, उल्काएँ और अन्य पिंड भी मौजूद हैं, जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे है। जबकि हमारा सूर्य अपने पूरे परिवार के साथ हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे के केंद्र के चारों ओर चक्कर लगा रहा है।

तो आइए आज हम हमारे सौरमंडल के बारे में विस्तार से जानते हैं।

सौरमंडल की खोज

सौरमंडल को समझने में हम इन्सानों को हजारों वर्ष लग गए। पुराने समय में हमारे पूर्वज पृथ्वी को पूरे ब्रह्मांड का केंद्र मानते थे। उनके अनुसार सूर्य और अन्य तारे धरती के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। परंतु वक्त के साथ यह अवधारणा भी बदल गई।

ग्रीक दार्शनिक Aristarchus of Samos ने सबसे पहले एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया, उनके अनुसार सूर्य हमारे ब्रह्मांड का केंद्र है। इसके बाद Nicolaus Copernicus ने इस सिद्धान्त का गणितीय रूप प्रस्तुत किया। लेकिन यह अभी भी कई बुद्धिजीवियों के सवालो को संतुष्ट नहीं कर रहा था।

17वीं शताब्दी में गैलीलियो गैलीली ने बृहस्पति ग्रह के चार चाँद खोज निकाले, जो उसके चारों ओर चक्कर लगा रहे थे। गैलीलियो की खोज को ही आगे बढ़ाते हुए क्रिस्टियान हुयेंस ने शनि ग्रह के छल्ले और उसके चाँद टाइटन को खोज निकाला।

साल 1705 में Edmond Halley ने एक छोटे से पिंड के बारे में पता लगाया, उन्होने महसूस किया कि प्रत्येक 75-76 सालों के बाद यह पिंड वापिस लौटता है। यह पहला प्रमाण था कि ग्रहों के अलावा कुछ ओर भी है जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है। जिसे धूमकेतु नाम दिया गया।

इसी समय के दौरान Solar System शब्द पहली बार अस्तित्व में आया। इसके बाद धीरे-धीरे यह पहली सुलझती गई और हम इन्सानों ने अपने दिमाग और कल्पनाओं से सौरमंडल को काफी हद तक समझने में सफलता हासिल की।

मौजूदा समय में हमारे द्वारा भेजे गए हजारों अंतरिक्ष मिशन सौरमंडल को गहराई से जाँचने में जूटे हुए हैं। वैज्ञानिक लगातार अपनी खोज को जारी रखे हुए हैं।

सौरमंडल का जन्म

सौरमंडल को समझने के बाद वैज्ञानिकों के दिमाग में इसके जन्म को लेकर काफी सवाल उत्पन्न हुए। इन सवालों के जवाब के लिए वैज्ञानिक दिन-रात मेहनत करने लगे। जिससे कई सारे सिद्धान्त निकलकर सामने आए।

इन सिद्धांतों में नेबुलर परिकल्पना सिद्धान्त (Nebular Hypothesis Theory) सबसे प्रभावशाली नजर आता है। इस सिद्धान्त के अनुसार हमारे सौरमंडल का निर्माण गैस और धूल से हुआ, जो हमारे सूर्य की परिक्रमा करता है।

इस थ्योरी को सर्वप्रथम Immanuel Kant ने 1755 में “Universal Natural History and Theory of the Heavens” में प्रकाशित किया। जिसे 1796 में Pierre Laplace के द्वारा संशोधित किया गया। हालाँकि इस थ्योरी में भी काफी सारी खामियाँ थी, जिसमें समय के साथ परिवर्तन होते गए।

इस सिद्धान्त के अनुसार हमारे सौरमंडल का निर्माण आज से 4.6 अरब वर्ष पहले हुआ था। जिस जगह आज हमारा सौरमंडल है, पहले उस जगह हाइड्रोजन, हीलियम और अन्य पदार्थों से बना एक विशाल बादल था। जिसका अधिकांश द्रव्यमान केंद्र में स्थित था।

इस क्षेत्र को Molecular Cloud या Nebula कहते है, जो कई प्रकाश वर्ष दूरी में फैला हुआ था। इस क्षेत्र को Pre-Solar Nebula भी कहते है। समय के साथ यह बादल तेजी से घूमने लगा। जिससे इसके केंद्र में स्थित द्रव्यमान गर्म होने लगा और यह बादल एक समतल डिस्क के रूप में बदल गया। इस डिस्क का व्यास तकरीबन 200 AU (1 AU= 15 करोड़ किमी.) था।

केंद्र में स्थित हाइड्रोजन और हीलियम के बीच परमाणु संलयन की अभिक्रिया होने लगी। जिससे यह ओर भी ज्यादा गर्म हो गया। समय के साथ गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से यह केंद्र सिकुड़ता और गर्म होता गया। जिसने एक बहुत बड़े पिंड का निर्माण किया, बाद में यही पिंड सूर्य बना।

बाकी का पदार्थ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। फिर समय के साथ चक्कर लगाते इस पदार्थ से ग्रहों का निर्माण हुआ, जिसमें धूल और गैस एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा बंधे हुए थे। शुरुआत में हमारे सौरमंडल में सैंकड़ों के संख्या में सूक्ष्म ग्रह विकसित हुए, जो समय के साथ या तो नष्ट हो गए या एक दूसरे में विलीन हो गए।

फिर बाकी का पदार्थ सूरज के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। जिसे हम आज धूमकेतु और क्षुद्रग्रह कहते हैं। इन्हीं से हमारे सौरमंडल में कुइपर बेल्ट, एस्ट्रोइड बेल्ट और ऊर्ट क्लाउड का निर्माण हुआ। एस्ट्रोइड बेल्ट बृहस्पति और मंगल ग्रह के मध्य में स्थित है।

सौरमंडल की सरंचना

सूर्य हमारे सौरमंडल का मुख्य पिंड है, जो एक G-2 प्रकार का तारा है। इसमें पूरे सौरमंडल का तकरीबन 99.86% द्रव्यमान समाहित है। इसके अलावा सूरज के चारों ओर चक्कर लगाने वाले चार बड़े गैसीय ग्रहों (शनि और बृहस्पति) का द्रव्यमान, सौरमंडल के बाकी बचे द्रव्यमान (0.14%) का 90% है।

इस प्रकार सौरमंडल में शेष बचे पिंड जैसे- 4 स्थलीय ग्रह, धूमकेतु, बौने ग्रह, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह आदि पूरे सौरमंडल के द्रव्यमान का सिर्फ 0.002% है। इससे हम अंदाजा लगा सकते है कि हमारा सूरज कितना विशाल है।

सौरमंडल के निर्माण के परिणामस्वरूप लगभग सभी ग्रह और पिंड उसी दिशा में परिक्रमा कर रहे है, जिस दिशा में सूर्य चक्कर लगा रहा है। लेकिन Halley’s Comet इसमें सबसे बड़ा अपवाद है, यह अन्य पिंडों की विपरीत दिशा में सूर्य की परिक्रमा करता है।

सूर्य के नजदीक परिक्रमा करने वाले ग्रहों को आंतरिक ग्रह कहते हैं, जिनमें बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह आते हैं। इसके बाद एस्ट्रोइड बेल्ट आती है, जिसमें अरबों की संख्या में क्षुद्रग्रह सूरज का चक्कर लगा रहे हैं। इसके बाद बाह्य ग्रह (बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण) आते हैं।

इन ग्रहों के बाद कुइपर बेल्ट आती है। फिर इसके बाद आता है हमारे सौरमंडल का सबसे दूर का इलाका, जिसमें Heliosphere, Oort cloud आदि आते हैं। इनके बाद हमारे सौरमंडल की सीमा समाप्त हो जाती है, हालांकि अभी तक अंतिम बिन्दु का पता नहीं लगाया जा सका है।

सौरमंडल का मुखिया सूर्य

सूर्य हमारे सौरमंडल का तारा है, यह पूरे सौरमंडल को अपनी ऊर्जा और प्रकाश देता है। धरती पर आज जीवन सूरज के कारण ही संभव है। बिना सूरज के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। सूरज हमें ऊर्जा और रोशनी प्रदान करता है, जो पानी को तरल रूप में रखता है।

इसके द्रव्यमान की बात करे तो इसमें 13 लाख पृथ्वी जितना द्रव्यमान समाहित हो सकता है। वही इसकी त्रिज्या की बात करे तो इसकी त्रिज्या 6,96,340 किलोमीटर है। 15 करोड़ किलोमीटर दूर से भी हमें सूरज अच्छी तरह नजर आता है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं, कि यह कितना विशालकाय है।

वहीं गुरुत्वाकर्षण बल सूरज पर धरती की तुलना में 27 गुणा अधिक शक्तिशाली है। पृथ्वी पर 1 किलोग्राम वजन वाली वस्तु का सूरज पर 27 किलोग्राम वजन होगा। सूरज के शक्तिशाली गुरुत्व बल का आप अंदाजा इस बात से लगा सकते है, कि यह अपने 22 लाख, 22 हज़ार किलोमीटर के दायरे में आने वाली प्रत्येक वस्तु को अपने अंदर निगल लेता है।

सूर्य में परमाणु संलयन की अभिक्रिया लगातार चलती रहती है, जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदलती है। जिसके परिणामस्वरूप सूर्य के कोर का तापमान हमेशा ऊंचा रहता है और इसी से ही रोशनी पैदा होती है। अन्य तारों की बात करें तो हमारा सूरज न तो अधिक गर्म है और न अधिक ठंडा।

यह दोनों के बीच का तारा है, ऐसे तारे को G-2 प्रकार का तारा कहा जाता है। रिसर्च से पता चलता है कि सूर्य के केंद्र का तापमान लगभग 1,57,00,000 डिग्री सेल्सियस है। यह वाकई में बहुत गर्म है, वही इसकी ऊपरी सतह का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेल्सियस है।

आंतरिक सौरमंडल

सूर्य से लगभग 70 करोड़ किलोमीटर के क्षेत्र को आंतरिक सौरमंडल कहते है। इसमें चार आंतरिक ग्रह (बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल) और एस्ट्रोइड बेल्ट आती है।

बुध ग्रह

बुध ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा और सूरज के सबसे नजदीक ग्रह है। यह एक स्थलीय ग्रह है, जिसकी सतह ऊबड़-खाबड़ है। बुध ग्रह की सतह पर काफी विशाल गड्ढे पाये जाते है, जिसमें से एक तो 1550 किलोमीटर व्यास का है।

इसकी सतह पृथ्वी के उपग्रह चाँद से काफी मिलती जुलती है। सूरज के नजदीक और कमजोर वायुमंडल होने के कारण इसकी सतह पर सौर-हवाओं की बारिश होती रहती है। जिसके कारण दिन के समय इसका तापमान 4270 सेन्टीग्रेड तक पहुँच जाता है।

वहीं रात के समय तापमान में तेजी से गिरावट आती है, जिससे सतह पर तापमान -1730 सेन्टीग्रेड तक नीचे गिर जाता है। इतना अधिक तापमान होने के कारण भी यह हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे गर्म ग्रह है। पहले स्थान पर शुक्र ग्रह आता है।

बुध ग्रह अपने अक्ष पर एक बार घूमने के लिए 59 पृथ्वी दिन का समय लेता है। वही यह सूर्य की परिक्रमा करने में 88 पृथ्वी दिनों का समय लेता है। इस तरह बुध ग्रह के 3 दिन, उसके 2 सालों के बराबर होंगे। सूर्य की सबसे तेज परिक्रमा करने में बुध ग्रह का पहला स्थान आता है।

इस ग्रह को आप सूर्योदय और सूर्यास्त होने के ठीक पहले अपनी नग्न आँखों से देख सकते है। पुराने जमाने में इसे सवेरे और सांझ का तारा कहते थे। बुध ग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल काफी कमजोर है, इस कारण इसका कोई प्राकृतिक उपग्रह नहीं है।

शुक्र ग्रह

हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह शुक्र है। इसके वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का काफी बोलबाला है। जिस कारण दिन के समय इसका तापमान 4750 सेल्सियस तक पहुँच जाता है। यह सूरज से दूसरा सबसे नजदीक ग्रह है।

इसके वायुमंडल में लगातार सल्फ्यूरिक अम्ल की बारिश होती रहती है। इसी बारिश के कारण इसके वायुमंडल में सल्फ्यूरिक अम्ल की परत बन गई। इस कारण यह हमें दूर से देखने पर हल्का पीला दिखाई देता है। इसके वायुमंडल में 96% CO2, 3.4% N2, 0.015% SO2 और अन्य विरल गैसें हैं।

इसकी सतह पर काफी ज्वालामुखी है, जिनसे लगातार लावा निकलता रहता है। इसके कारण इसकी 70% सतह लावे से बनी हुई है। शुक्र ग्रह पर काफी तेज हवाएँ चलती है, जिनकी रफ्तार 350 किलोमीटर/सेकंड तक होती है। कई बार यह ज्यादा भी हो जाती है।

द्रव्यमान और आकार में यह पृथ्वी के लगभग बराबर है, इस कारण इसे पृथ्वी की छोटी बहन भी कहते हैं। यह पृथ्वी से 4 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है, जिस कारण यह पृथ्वी के सबसे नजदीक का ग्रह है। बुध ग्रह की तरह आप इसे सुबह व शाम के समय अपनी नग्न आँखों से देख सकते हैं।

शुक्र ग्रह अपनी धूरी पर विपरीत दिशा में घूमता है, यह अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की तरफ घूर्णन करता है। जिस कारण शुक्र ग्रह पर सूरज पश्चिम दिशा से निकलता है। यह अपने अक्ष पर एक चक्कर 243 पृथ्वी दिन में लगाता है, जो काफी धीमा है।

वहीं यह सूर्य की परिक्रमा 225 पृथ्वी दिनों में करता है। इस कारण इसका एक दिन, इसके एक साल से भी बड़ा है। बुध ग्रह की तरह ही इसका भी कोई चंद्रमा या उपग्रह नहीं है।

पृथ्वी

आजतक ज्ञात ब्रह्मांड का एकमात्र ऐसा ग्रह जिस पर जीवन मौजूद है। यह सूर्य से तीसरा सबसे नजदीक व सौरमंडल का पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है। धरती का जन्म आज से तकरीबन 4.54 अरब वर्ष पहले हुआ था।

धरती अपनी धूरी पर 23.50 झुकी हुई है। यह सूर्य का एक चक्कर 365 दिन में लगाती है, तथा अपने अक्ष पर 24 घंटों में एक बार घूमती है। पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ अंडाकार पथ में परिक्रमा करती है। धरती का एक प्राकृतिक उपग्रह है, जिसे हम चंद्रमा कहते है।

यह सूर्य से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है, व सूर्य की किरणों को इस तक पहुँचने में लगभग 8 मिनट का समय लगता है। जिस क्षेत्र में पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है, उस क्षेत्र को तारे का Goldilocks Zone कहते है।

एक तारे का यह वो क्षेत्र होता है, जिसमें उपस्थित सभी पिंडों पर तारे का न तो ज्यादा प्रकाश पड़ता है और न ही कम। इसी कारण धरती पर पानी तीनों अवस्था में पाया जाता है। पृथ्वी के 71% हिस्से पर पानी है, इस कारण अंतरिक्ष से देखने पर यह हमें नीली दिखाई देती है। वैज्ञानिक इसे नीला ग्रह भी कहते है।

पृथ्वी का एक शक्तिशाली वायुमंडल है, जो धरती को सूरज से आने वाली पैराबैंगनी किरणों से बचाता है। अंतरिक्ष से आने वाले पिंड वायुमंडल से टकराकर नष्ट हो जाते है। इस कारण इस ग्रह पर रहने वाले जीव आकाशीय आपदाओं से सुरक्षित है।

पृथ्वी के वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीज़न और शेष अन्य गैसें हैं। जिसमें कार्बन डाई ऑक्साइड और आर्गन प्रमुख है। धरती चार परतों से बनी है, तथा इसके केंद्र का तापमान बहुत ज्यादा है। रिसर्च से पता चलता है कि इसके केंद्र का तापमान लगभग 60000 सेल्सियस है।

मंगल ग्रह

मंगल ग्रह हमारे सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां वैज्ञानिक जीवन को संभव मान रहे हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हम इंसानों का जन्म मंगल ग्रह पर हुआ था। लेकिन इस ग्रह के बदलते मौसम के कारण हम दूसरे ग्रह पर आने को मजबूर हो गए।

यह सिर्फ कुछ थ्योरी है, इसका प्रमाण आजतक किसी के पास नहीं है। लेकिन वर्तमान में मंगल ग्रह पर हो रही खोजें शीघ्र ही बड़े रहस्यों से पर्दा उठाएगी। अंतरिक्ष में आज मंगल ग्रह सबसे बड़ा शोध का क्षेत्र है, स्पेस एंजेसिया लगातार इस ग्रह पर अपने मिशन भेज रही है।

मंगल ग्रह के आकार की बात करें तो यह हमारी धरती से आधा है। यह सूर्य से चौथा सबसे नजदीक और सौरमंडल का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है। मंगल अपने अक्ष पर 24 घंटे, 39 मिनट, 35.244 सेकंड में एक बार घूमता है। इस तरह पृथ्वी और मंगल का एक दिन लगभग समान है।

मंगल 687 पृथ्वी दिनों के समय में सूरज की एक परिक्रमा करता है। इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी सतह पर आयरन ऑक्साइड की परत बिछी हुई है। जिस कारण इसकी मिट्टी का रंग हमेशा लाल रहता है।

यह एक स्थलीय ग्रह है, जिसका वातावरण विरल है। लाल ग्रह का वायुमंडल काफी पतला है, जिस कारण सूर्य से इतना दूर होने के बाद भी इस पर दिन में तापमान 350 सेल्सियस रहता है। इसके वायुमंडल में 95.32% कार्बन डाई ऑक्साइड, 1.6% आर्गन, 0.13% ऑक्सिजन और 0.08% कार्बन मोनो ऑक्साइड है।

हमारे सौरमंडल का सबसे ऊंचा पर्वत Olympus Mons (लगभग 27 किलोमीटर ऊंचा) इसी ग्रह पर स्थित है। इसके अलावा सौरमंडल की सबसे बड़ी घाटी Valles Marineris इसी पर स्थित है, जो 10 किमी. गहरी और 4000 किमी. लंबी है।

सबसे बड़ा ज्वालामुखी Olympus Mons भी इसी ग्रह पर है। जिसका व्यास लगभग 600 किलोमिटर है। मंगल के दो चाँद फोबोस और डिमोस हैं। जो किसी क्षुद्रग्रह की तरह है, जिनकी कोई निश्चित आकृति नहीं है।

एस्ट्रोइड बेल्ट

एस्ट्रोइड बेल्ट बृहस्पति और मंगल ग्रह के बीच स्थित है। यह सूरज से 33 करोड़ से 48 करोड़ किलोमीटर (कुल 15 करोड़ किलोमीटर में) दूर के क्षेत्र में फैली हुई है। इस बेल्ट में छोटे-छोटे चट्टानी पिंड सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं।

विज्ञान की भाषा में इन पिंडों को क्षुद्रग्रह या छोटे ग्रह कहते हैं। यह अंतरिक्ष में काफी तेजी से सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इस बेल्ट के क्षुद्रग्रहों को तीन भागों में बांटा गया है, जो इस प्रकार है- Carbonaceous Asteroids (सी-प्रकार), Silicate (एस-प्रकार) और Metal-Rich (एम-प्रकार)।

ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में आने वाली सभी क्षुद्रग्रह छोटे आकार के है, इनमें से चार काफी विशाल है। जिनका द्रव्यमान पूरी एस्ट्रोइड बेल्ट के द्रव्यमान का आधा है। इनके नाम Ceres, Vesta, Pallas और Hygeia है।

Ceres एक बौना ग्रह भी है, जिसका व्यास लगभग 950 किलोमीटर है। सेरेस का द्रव्यमान इन तीनों क्षुद्रग्रहों के द्रव्यमान का 62% है। इसके अलावा बाकी बचे तीनों एस्ट्रोइडस का व्यास 600 किलोमीटर से कम है।

वही पूरी एस्ट्रोइड बेल्ट के द्रव्यमान की बात करें तो इसका द्रव्यमान हमारे चाँद के द्रव्यमान का 4% है। इससे आप अंदाजा लगा सकते है, कि यह क्षेत्र काफी खाली है। जिसमें ज़्यादातर धूल के कण ही गतिमान रहते हैं। इस कारण धरती से भेजे गए मानव रहित विमान आसानी से इस क्षेत्र से गुजर जाते हैं।

लेकिन फिर भी कुछ क्षुद्रग्रह बड़े आकार के हैं। हालिया में हुए अध्ययन से पता चलता है कि इसमें 200 एस्टेरोइड ऐसे हैं जिनका व्यास 100 किलोमीटर के आसपास है। वहीं 7 लाख से 17 लाख क्षुद्रग्रह ऐसे हैं, जिनका व्यास 1 किलोमीटर है।

बाह्य सौरमंडल

यह गैसीय ग्रहों और उनके विशाल चंद्रमाओं का एक घर है। इस क्षेत्र में बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण जैसे गैसीय ग्रह आते हैं। इन ग्रहों को बाह्य ग्रह भी कहते हैं। सूर्य से अधिक दूरी होने के कारण यहाँ पानी, अमोनिया और मिथेन जैसी गैसें ठोस अवस्था में रहती है।

कुछ वैज्ञानिक इन ग्रहों को Jovian Planets भी कहते है। सूरज के चारों ओर चक्कर लगा रहे कुल द्रव्यमान का 99% इन्हीं चारों गैसीय ग्रहों का हैं। शनि ग्रह की तरह जोवियन ग्रहों के चारों ओर एक वलय है। शनि ग्रह की वलय बड़ी और गहरी होने के कारण इसे हम आसानी से देख सकते हैं।

बृहस्पति

बृहस्पति सूरज से पांचवा नजदीक ग्रह है। यह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है, जिसका कुल द्रव्यमान बाकी ग्रहों के कुल द्रव्यमान का 2.5 गुना और सूर्य के कुल द्रव्यमान का 1000वां हिस्सा है। यह सूरज के चारों ओर चक्कर लगाता एक विशाल गैसीय दानव है।

धरती से देखने पर रात्री के आसमान में यह चाँद और शुक्र के बाद सबसे चमकीला पिंड है। बृहस्पति की सूर्य से औसत दूरी लगभग 77.8 करोड़ किलोमीटर है। वहीं इसके आकार की बात करें तो इसका व्यास 1,42,984 किलोमीटर है। जो सूरज के कुल व्यास का 10वां हिस्सा है।

यह ग्रह 75% आण्विक हाइड्रोजन, 24% हीलियम और शेष मिथेन, पानी, अमोनिया, सिलिकॉन, कार्बन, इथेन, नियोन, ऑक्सिजन, सल्फर आदि से मिलकर बना है। बृहस्पति के 90% हिस्से में हाइड्रोजन का फैलाव है। बृहस्पति के आयतन की बात करें तो इसमें तकरीबन 1321 पृथ्वी समाहित हो सकती है।

बृहस्पति पर एक विशाल तूफान पिछली कुछ सदियों से लगातार चल रहा है। इस तूफान को “The Great Red Spot” कहते है। इस तूफान में चलने वाली हवाओं की रफ्तार तकरीबन 400 किमी/घंटा के आसपास है। यह तूफान आकार में पृथ्वी से भी बड़ा है।

18वीं सदी में जब पहली बार इसे देखा गया तो इसकी लंबाई 41,000 किलोमीटर थी। जो 1979 में आकर 23,300 किमी हो गया। इसके बाद 2015 में यह घटकर 16500 किमी रह गया। यानी प्रत्येक वर्ष इसकी लंबाई में 930 किलोमीटर की कमी हो रही है।

बृहस्पति अपने अक्ष पर बाकी ग्रहों की तुलना में सबसे तेज गति से घूर्णन करता है। यह 9 घंटे, 55 मिनट में अपना एक घूर्णन पूरा करता है। वहीं सूर्य के चारों ओर एक चक्कर 11.86 पृथ्वी वर्षों या 4332.59 पृथ्वी दिनों में लगाता है।

बृहस्पति के 79 ज्ञात चंद्रमा है, जिनमें 60 उपग्रह तो 10 किलोमीटर से कम व्यास के हैं। इसके चार सबसे बड़े चाँद Lo, Europa, Ganymede और Callisto है। इन्हें साफ आसमान में टेलिस्कोप की मदद से देखा जा सकता है।

बृहस्पति को सौरमंडल का वैक्युम क्लीनर भी कहते है, क्योंकि यह “ऊर्ट क्लाउड” और कुइपर बेल्ट से आने वाले धूमकेतु को अपनी ओर खींच लेता है। इसका शक्तिशाली गुरुत्व बल इन पिंडों को पृथ्वी की ओर आने से रोकता है।

शनि

हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा और सूरज से छठा दूर ग्रह है। इसका व्यास लगभग 1,20,536 किलोमीटर है। इसकी सूर्य से औसत दूरी लगभग 142,66,66,421 किलोमीटर है। यह पृथ्वी से 127 करोड़ किलोमीटर दूर है।

शनि अपने अक्ष पर 10 घंटे, 34 मिनट में एक बार घूमता है। इस कारण यह बृहस्पति के बाद सबसे तेज घूमता ग्रह है। सूरज से काफी दूर होने के कारण, इसको सूर्य का एक चक्कर लगाने में तकरीबन 29.4571 वर्षों का समय लगता है।

शनि ग्रह का घनत्व बहुत कम है, यहाँ तक कि पानी से भी कम। यानी पानी में डुबोने पर यह डूबने की बजाय पानी पर तैरता हुआ नजर आएगा। शनि का वजन इसके आकार के अनुरूप काफी कम है। यह एक गैसीय ग्रह है, इस कारण इसमें कहीं पर कोई ठोस जमीन नहीं है।

शनि के वायुमंडल में 96.3% आण्विक हाइड्रोजन, 3.25% हीलियम और बाकी अमोनिया, एसीटिलीन, इथेन, मिथेन और प्रोपेन है। यह अंदर से बहुत गर्म है, जिस कारण इस ग्रह पर तेज आंधीया चलती है। इन हवाओं की रफ्तार 1800-2000 किमी/घंटा रहती है।

शनि के आजतक ज्ञात 82 उपग्रह है, जिनमें टाइटन सबसे बड़ा उपग्रह है। यह एक ऐसा पिंड है जिस पर तरल रूप में नदियां बहती है। इस कारण वैज्ञानिक इस पर जीवन की संभावनाएं तलाश रहे है। टाइटन का द्रव्यमान शनि के चारों ओर चक्कर लगा रहे सभी पिंडों के कुल द्रव्यमान का 90% है।

शनि ग्रह के चारों ओर बर्फ व अन्य चट्टानी टुकड़ों से मिलकर बनी एक वलय है। धरती से इन्हें आसानी से देखा जा सकता है। इन वलयों को वैज्ञानिकों ने 7 भागों में बांटा है। यह वलय शनि से 7,000 किलोमिटर से 80,000 किलोमीटर के बीच फैली हुई है।

अरुण (Uranus)

इस ग्रह की खोज 13 मार्च, 1781 को William Herschel के द्वारा की गई थी। सूर्य से दूरी के हिसाब से यह हमारे सौरमंडल का सातवाँ ग्रह है। यूरेनस सूर्य से 290 करोड़ किलोमीटर दूर है। सूर्य की किरण को यूरेनस तक पहुँचने में 2 घंटे और 40 मिनट का समय लगता है।

यह सूर्य के चारों ओर एक चक्कर 84.0205 वर्षों में लगाता है। यह अपने अक्ष पर 17 घंटे, 14 मिनट में एक बार घूर्णन करता है। सूर्य से इतना दूर होने के कारण इस पर प्रकाश नहीं पहुँच पाता है, इसलिए यह एक बर्फ से बना गैसीय ग्रह है।

इसके आकार की बात करे तो यह पृथ्वी से चार गुना बड़ा है। इसका व्यास लगभग 50,000 किलोमीटर है। व इसका द्रव्यमान पृथ्वी से 14.5 गुना ज्यादा है। इसका द्रव्यमान 8.6810×1025 है। वहीं इसका पलायन वेग (गुरुत्व क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए आवश्यक गति) 21.3 किमी/से. है।

यूरेनस के 27 ज्ञात उपग्रह है, जिसमें सबसे बड़ा टाइटेनिया उपग्रह है। जिसका व्यास लगभग 1578 किलोमीटर है। टाइटेनिया हमारे सौरमंडल का 8वां सबसे बड़ा कृत्रिम उपग्रह है। अरुण के चारों तरफ 13 वलय है, जिसमें से दो का आकार काफी छोटा है।

यूरेनस के वायुमंडल में आण्विक हाइड्रोजन, हीलियम और मिथेन गैसें है। इसका 80% द्रव्यमान बर्फीले कणों (पानी, मिथेन, अमोनिया आदि) में समाहित है। इसके वायुमंडल में मिथेन गैस होने के कारण यह हमें नीला दिखाई देता है।

प्रकाश की किरणें जब मिथेन गैस के कणों पर पड़ती है, तो वह वापिस परावर्तित होकर नीले रंग की बन जाती है। यूरेनस पर बहुत तेज हवाएँ चलती है, जिनकी रफ्तार तकरीबन 900 किमी/घंटा के आसपास रहती है।

वरुण ग्रह (Neptune)

वरुण सौरमंडल का आठवाँ और सूर्य से सबसे दूर ग्रह है। यह आकार में चौथा सबसे बड़ा और वजन में तीसरा सबसे भारी ग्रह है। इसका कुल द्रव्यमान पृथ्वी से 17 गुना ज्यादा है। इस ग्रह की खोज 23 सितंबर, 1846 को Johann Galle ने टेलिस्कोप की मदद से की थी।

दूरी के हिसाब से यह सूरज से 450 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसे सूरज का एक चक्कर लगाने में तकरीबन 164.79 वर्षों का समय लगता है। पृथ्वी से ज्यादा दूर होने के कारण इसे सीधे देखना मुश्किल है। यह अपने अक्ष पर 16.11 घंटों में एक बार घूमता है।

बात करें इसके वायुमंडल की तो इसके वायुमंडल में शनि और बृहस्पति की तरह हाइड्रोजन (80%) और हीलियम (19%) की प्रचूरता है। इस कारण यह एक गैसीय ग्रह है, जिसे बर्फ़ीला गैसीय ग्रह भी कहते है। इसके वायुमंडल में मिथेन की उपस्थिती इसके नीला दिखने का एक कारण है।

नेपच्यून के वायुमंडल को दो भागों में बांटा गया है, जिसमें ऊपरी हिस्से को Troposphere और निचले हिस्से को Stratosphere कहते है। ऊंचाई के साथ Troposphere में तापमान घटता और Stratosphere में बढ़ता जाता है। इस ग्रह का औसत तापमान -221.30 सेन्टीग्रेड है।

इस ग्रह पर बहुत तेज हवाएँ चलती है, जिनकी रफ्तार तकरीबन 2200 किमी/घंटा होती है। यह हवाएँ ग्रह के घूर्णन की दिशा के विपरीत दिशा में चलती है। नेपच्यून पर एक तूफान पिछली कुछ सदियों से लगातार चल रहा है। वैज्ञानिक इसे Great Dark Spot कहते है। इस तूफान की लंबाई 13000 किमी. और चौड़ाई 6600 किमी. है।

वरुण के 14 ज्ञात उपग्रह है, जिनमें ट्राईटन सबसे बड़ा है। वरुण के चारों ओर चक्कर लगा रहे कुल द्रव्यमान का 99.5% इस अकेले उपग्रह में है। ट्राइटन सौरमंडल के सबसे ठंडे पिंडों में से एक है, जिसका औसत तापमान -2350 सेन्टीग्रेड है।

अन्य गैसीय ग्रहों की तरह इसकी भी एक वलय है, जो बर्फ के कणों, सिलिकेट्स और कार्बन से बने धातुओं से मिलकर बनी है। इसकी तीन मुख्य वलय Adams Ring, Le Verrier Ring और Galle Ring है। जो वरुण के केंद्र से क्रमशः 63000, 53,000 और 42,000 किलोमीटर दूर है।

Trans Neptunian क्षेत्र

नेपच्यून की कक्षा के बाद इसकी शुरुआत हो जाती है। इस क्षेत्र में कुइपर बेल्ट, प्लूटो, Scattered Disk और अन्य बौने ग्रह आते हैं।

कुइपर बेल्ट

यह एक बर्फ के कणों से बना एक क्षेत्र है। जिसमें हजारों बौने ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं। यह सूरज से 450-750 करोड़ किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में अनुमानित एक लाख से अधिक पिंड 50 किलोमीटर से ज्यादा व्यास के है।

कुइपर बेल्ट एक खाली क्षेत्र है। इसका कुल द्रव्यमान, पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का 100वां हिस्सा है। कुइपर बेल्ट को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है। जिनके नाम “Classical” बेल्ट और “The Resonances” बेल्ट है।

प्लूटो

यह एक बौना ग्रह है, जो सूरज से 585 करोड़ किलोमीटर दूर है। यह कुइपर बेल्ट का सबसे बड़ा ज्ञात पिंड है। सूर्य की किरणों को इस तक पहुँचने में 5 घंटे, 30 मिनट का समय लगता है। यह सूर्य का एक चक्कर 94 वर्षों में लगाता है।

प्लूटो को सबसे पहले 1930 में खोजा गया था। तब यह हमारे सौरमंडल का नौवाँ ग्रह था, लेकिन साल 2006 में इसे बदलकर बौना ग्रह वना दिया। यह हमारे सौरमंडल का नौवाँ सबसे बड़ा और दसवाँ सबसे भारी पिंड है।

प्लूटो के 5 ज्ञात चंद्रमा है, जिनमें Charon सबसे बड़ा है। यह प्लूटो के व्यास का आधा है। इसके अलावा अन्य उपग्रह Styx, Nix, Kerberos और Hydra है। इसकी सतह का औसत तापमान -2290 C है। प्लूटो का गुरुत्वाकर्षण बल बहुत कमजोर है।

Scattered Disk

Scattered Disk दूर-दूर बिखरे अंतरिक्षी पिंडों का एक घर है। इसमें ज़्यादातर धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा करता है। यह हमारे सौरमंडल में 200 AU (1 AU= 15 करोड़ किलोमीटर) यानी 3000 करोड़ किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।

यह एक गतिशील वातावरण है, जिसमें प्रत्येक पिंड बहुत तेजी से गति करता है। कुछ वैज्ञानिक इसे कुइपर बेल्ट का ही एक अलग हिस्सा मानते हैं। 90377 Sedna नामक पिंड भी इसी डिस्क में परिक्रमा करता है।

सबसे दूर-दराज का क्षेत्र

यह हमारे सौरमंडल का सबसे अंतिम क्षेत्र है। इसके बाद Interstellar Space (अंतरतारकीय अन्तरिक्ष) की शुरुआत होती है। लेकिन इसे सही से परिभाषित करना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि सौर हवाएँ और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल इसमें अवरोध उत्पन्न करता है।

Heliosphere

यह सौर हवाओं द्वारा बना एक विशाल बुलबुले जैसा क्षेत्र है, जो कभी घटता है और कभी बढ़ता है। इस क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है। जिसे अंतरतारकीय क्षेत्र, सौर हवा क्षेत्र और सूर्य का गुरुत्व क्षेत्र है। इस क्षेत्र में 800 किलोमीटर/सेकंड की रफ्तार से सौर हवाएँ चलती हैं।

Oort Cloud

आकार में यह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में खरबों की संख्या में बर्फ से बने पिंड मौजूद है। यह 2,000-100,000 AU (0.03 – 1.87 प्रकाश वर्ष) के क्षेत्र में फैला हुआ है। लेकिन कुछ वैज्ञानिक इसे 2,00,000 AU तक फैले होने की संभावना भी बताते हैं।

यानी अगर हम 3,00,000 किमी/सेकंड की रफ्तार से गति करे तो इसके अंतिम छोर तक पहुँचने में हमें 1.87 वर्षों का समय लग जाएगा। नासा द्वारा भेजा गया Voyager-1 को इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए 300 वर्षों और बाहर निकलने में 30,000 वर्षों का समय लगेगा। Voyager-1 17 किमी/से. की रफ्तार से गति कर रहा है।

इसे दो भागों में बांटा गया है। पहला आंतरिक क्षेत्र 2,000-5,000 AU और दूसरा बाह्य क्षेत्र 10,000-1,00,000 AU के बीच फैला हुआ है। इस क्षेत्र के बाद हमारे सौरमंडल की सीमाएं शुरू हो जाती है। हालांकि अंतिम सीमा का अभी तक पता लगाना बाकी है।

सौर्स- नासा

Leave a Comment