ईसबगोल की खेती कैसे करें? (Isabgol Ki Kheti Kaise Kare)
ईसबगोल की खेती कैसे करें (Isabgol Ki Kheti Kaise Kare)– “प्लांटागो ओवाटा” जिसे आमतौर पर अंग्रेजी में ‘साइलियम’ और हिंदी में ‘इसबगोल’ के रूप में जाना जाता है। ईसबगोल प्लांटागिनेसी के परिवार से संबंधित है और यह 10-45 सेमी लघु-तने वाली वार्षिक जड़ी-बूटी है। इसे प्रायः अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि अश्वगोलम, एस्पागोल, एस्पागोल, बाजारकुटुना, गोरा साइलियम आदि।
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सबसे ज्यादा कमाई वाली फसल
इसबगोल में फाइबर की मात्रा अधिक होती है और यह आंतों को साफ करने के लिए स्पंज की तरह काम करता है। दुनिया के कई हिस्सों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। यह रबी के मौसम में बोई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है, जो अपने औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है।
इसकी भूसी के अलावा (बीज कोट को “भूसी” के रूप में जाना जाता है) इसका उपयोग खाने वाली वस्तुओं में विशेष रूप से आइसक्रीम, बिस्कुट और कैंडी में भी किया जाता है। ईसबगोल की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और मध्य प्रदेश में की जाती है।
भारत इसबगोल उत्पादन (98%) में पहले स्थान पर है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बीज और भूसी का एकमात्र आपूर्तिकर्ता है। औषधीय पौधों में ईसबगोल विदेशी मुद्रा कमाने के मामले में पहला स्थान रखता है, इससे सालाना तकरीबन 30 मिलियन रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
ईसबगोल में प्रचूर मात्रा में प्रोटीन और कोलाइडल म्यूसिलेज पाए हैं जो औषधीय अनुप्रयोग के लिए मूल्यवान होते हैं। इनका उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपैथिक दवाओं में किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से इसबगोल के बीज और भूसी का मुख्य आयातक देश है। संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में इसकी हमेशा भारी मांग रहती है। इस कारण इसके उत्पादन का लगभग 90% इन देशों को निर्यात किया जाता है।
ईसबगोल की खेती कैसे करें? (Isabgol Ki Kheti Kaise Kare)
तो अब सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि ईसबगोल की खेती कैसे करें? (Isabgol Ki Kheti Kaise Kare) इसके लिए हम आज आपको इस आर्टिक्ल में अच्छी से अच्छी जानकारी दे रहे हैं।
मौसम, जलवायु और मिट्टी
ईसबगोल पर्यावरण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील फसल है। इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु और परिपक्वता के दौरान शुष्क धूप की आवश्यकता होती है। इसके अलावा हल्की ओस, बादल वाला मौसम या हल्की बौछारें भी बीज के अंकुरण में सहायक होती हैं।
बीज के अंकुरण के लिए 20‐ 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। जबकि परिपक्वता के समय इसके लिए 30‐ 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। बुवाई का आदर्श समय नवम्बर के प्रथम सप्ताह में होता है। एवं फसल की कटाई फरवरी और मार्च के समय में की जाती है।
ईसबगोल की खेती (Isabgol Ki Kheti) के लिए बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, क्योंकि इस मिट्टी में पानी का ठहराव न के बराबर होता है। बलुई मिट्टी में अच्छी उपज देने के कारण इसकी राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में सबसे ज्यादा खेती की जाती है। मिट्टी का पीएच मान 7-8 तक उत्तम होता है।
ज्यादा बारिश, कोहरा, वातावरण में नमी, ओस फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि इनसे पौधों के बीजों के झड़ने का डर रहता है। इसलिए इन बातों का भी खासकर ध्यान रखना होता है। ऐसे क्षेत्र में इसकी बुवाई न करें जहां इनकी मात्रा ज्यादा हो।
भूमि की तैयारी
ईसबगोल की खेती के लिए भूमि की अच्छी तरीके से जुताई करनी चाहिए। ताकि जमीन जंगली घास और झुरमुट से मुक्त होना चाहिए। इसके अलावा क्यारियों को तैयार करना महत्वपूर्ण है, ताकि सिंचाई करने में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।
अंत में जुताई करते समय लगभग 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलानी चाहिए। तथा पूरे खेत को, मिट्टी के प्रकार और ढलान के आधार पर छोटे भूखंडों (8-12m x 3m) में विभाजित करना चाहिए।
जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता
इसबगोल की खेती के लिए गर्म-समशीतोष्ण जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। इसे ठंडे और शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है, इस कारण इसे सर्दियों के महीनों में बोया जाता है। नवंबर के पहले सप्ताह में बुवाई करने से इसकी अच्छी उपज मिलती है।
पौधे के परिपक्व के समय पर यदि मौसम आर्द्र होता है, तो इसके बीज टूट जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप उपज में कमी आती है। भारी ओस या हल्की फुहार भी उपज को आनुपातिक रूप से कम कर देती है। जिससे कभी-कभी फसल का पूरा नुकसान भी हो जाता है। बीज अंकुरण के लिए अधिकतम तापमान लगभग 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है।
ईसबगोल का पौधा हल्की रेतीली से बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी तरह से उगता है। खराब जल निकासी वाली मिट्टी इस फसल के लिए अनुकूल नहीं है। रेतीली-दोमट मिट्टी जिसमें मिट्टी का पीएच 7 से 8.4 तक हो और नमी की मात्रा कम हो, पौधों की वृद्धि और बीजों की उच्च उपज के लिए आदर्श है। बीजों के अच्छी तरह से अंकुरण के लिए आमतौर पर बुवाई से पहले खेत की सिंचाई की जाती है।
उन्नत किस्में
ईसबगोल की खेती कैसे करें? (Isabgol Ki Kheti Kaise Kare) लेख में सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसकी अच्छी पैदावार के लिए कौनसी किस्म सबसे उत्तम रहती है। हाल ही में हुई अच्छी पैदावार के अनुसार हमने इसकी अच्छी उपज देने वाली कुछ क़िस्मों का पता लगाया है, जो इस प्रकार से हैं।
हरियाणा ईसबगोल
इसमें हरियाणा ईसबगोल 1, 2 और 5 ईसबगोल की खेती (Isabgol Ki Kheti) के लिए अच्छी किस्में मानी जाती हैं। इस प्रजाति को चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा द्वारा 1989 में विकसित किया गया था। पिछले कुछ वर्षों से इसका परिणाम शानदार रहा है। यह किस्में 10-12 क्विंटल/हेक्टेयर की उपज देती हैं।
गुजरात ईसबगोल
गुजरात ईसबगोल 1 और 2 अच्छी किस्में मानी जाती हैं। जैसा की नाम से ही जाहीर है, यह किस्में गुजरात में सबसे ज्यादा बोई जाती हैं। इसका उत्पादन 8-9 क्विंटल/हेक्टेयर है।
जवाहर ईसबगोल
ईसबगोल की इस किस्म से 13-15 क्विंटल/हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है। इस किस्म को 1996 में राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था।
इसके अलावा ईसबगोल की उन्नत किस्में एसआई-5, एमआईजी- 2, 5, 6, 8, आईआई-1, 89, ट्रांबे सलेक्सन- 1, 10 आदि प्रमुख है। इन क़िस्मों को कृषि विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त है। आप एक बार अपने नजदीकी कृषि अनुसंधान केंद्र पर जाकर अपने क्षेत्र की बढ़िया क़िस्मों का पता लगा सकते हैं।
बुवाई
जल्दी बुवाई करने से ईसबगोल के पौधो की जरूरत से ज्यादा वृद्धि होती है, जबकि देर से बुवाई करने पर पौधे को परिपक्व होने में समस्या होती है। इसके अलावा देरी से बुवाई करने पर प्री-मानसून बारिश (अप्रैल-मई की बारिश) के कारण तैयार पौधे के बीज टूटने का खतरा बढ़ जाता है। इसबगोल की बुवाई का आदर्श समय नवंबर के पहले सप्ताह में है।
बुवाई के लिए पिछले वर्ष की फसल के बोल्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग किया जा सकता है। सबसे अच्छी बीज दर 8-10 किग्रा/हेक्टेयर है। उच्च बीज दर से डाउनी मिल्ड्यू रोग की गंभीरता बढ़ सकती है। बीज को पंक्तियों में 15 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए।
इसके अलावा बीज के साथ बलुई मृदा को मिलाकर बुआई करने से बीज गिरने की दर कम-ज्यादा नहीं होगी। बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज जमीन में 15 सेमी. की गहराई पर बोया जाए। ईसबगोल का पौधा बड़े दिनों में जल्दी पककर तैयार होता है, इस कारण इसे नवंबर-दिसंबर में बोया जाता है।
पोषक तत्व प्रबंधन
भूमि की तैयारी के दौरान 6 से 8 टन प्रति एकड़ की अच्छी तरह से विघटित फार्म यार्ड खाद (FMY) को भूमि में प्रयोग किया जाना चाहिए। इसबगोल की फसल अजैविक उर्वरकों जैसे N, P2O5 और K2O के लिए अच्छा रिस्पोंस देती है। इस फसल के लिए 20:10:12 किग्रा/एकड़ के अनुपात में N:P2O5:K2O की आवश्यकता होती है।
नाइट्रोजन का उपयोग आधा बुवाई के समय तथा शेष मात्रा बुवाई के 4 सप्ताह बाद डालनी चाहिए। बुवाई के समय 25 किलोग्राम/हेक्टेयर और इतनी ही बाद में नाइट्रोजन मिलानी चाहिए। इसके अलावा 25 किलोग्राम फास्फोरस भी नाइट्रोजन के साथ मिलानी चाहिए।
सिंचाई
ईसबगोल की खेती कैसे करें? (Isabgol Ki Kheti Kaise Kare) लेख में सिंचाई को समझना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि ईसबगोल की खेती (Isabgol Ki Kheti) में पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है। बुवाई के कुछ दिन बाद हल्की सी सिंचाई ईसबगोल की खेती (Isabgol Ki Kheti) के लिए उपयुक्त है।
इसकी खेती के लिए 4 सिंचाई उत्तम रहती है। बुवाई के तुरंत बाद की गई सिंचाई हल्की होती है, इसके बाद दूसरी सिंचाई थोड़ी मध्यम और 40-45 दिन बाद करनी चाहिए। इस बात का विशेषकर ध्यान रखें कि ज्यादा सिंचाई से खेत में पानी जमा न हो।
इसके बाद तीसरी सिचाई 70 दिन बाद उपयुक्त रहती है और चौथी हल्के से बीज पड़ने पर। बाद में सिंचाई का ज्यादा महत्व नहीं रहता है। परंतु अगर आपको आवश्यकता महसूस हो तो एक हल्की सी सिंचाई भी कर सकते हैं। सिंचाई के बाद समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।
फसल काटना
बुवाई के दो महीने बाद पौधे का खिलना शुरू हो जाता है और फरवरी-मार्च (बुवाई के 110-130 दिन बाद) में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। परिपक्व होने पर फसल पीली और स्पाइक भूरे रंग के हो जाते हैं। जब स्पाइक्स को थोड़ा सा भी दबाया जाता है तो बीज गिरने लगते हैं।
कटाई के समय वातावरण शुष्क होना चाहिए और पौधे पर नमी नहीं होनी चाहिए। कटाई से बीज काफी हद तक बिखर जाने का खतरा रहता है, इसलिए फसल की कटाई सुबह 10 बजे के बाद करनी चाहिए। इसबगोल के बीजों की भूसी को अलग करने के लिए अच्छी मशीन का उपयोग करना चाहिए।
वजन के हिसाब से लगभग 30 से 35% भूसी निकलती है। इसबगोल की औसतन 700-1000 किलोग्राम/हेक्टेयर की फसल प्राप्त की जा सकती है। किसानों के सामने प्रमुख इस फसल से जुड़ी प्रमुख समस्याएं प्रमाणित और उन्नत एचवीवाई बीज की समय पर अनुपलब्धता, उर्वरकों और कीटनाशकों की उच्च लागत, उच्च श्रम लागत, मशीनीकरण के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर, फसल के समय उपयुक्त मूल्य, ऋण सुविधा और अच्छी भंडारण सुविधाएं हैं।
ईसबगोल की खेती (Isabgol Ki Kheti) से प्रति हेक्टेयर 70-80 हजार रुपए का शुद्ध फायदा लिया जा सकता हैं। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि ईसबगोल एक फायदा देने वाली और कम समय में तैयार होने वाली फसल है। आप भी इस फसल से अच्छी-ख़ासी कमाई कर सकते हैं।
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निष्कर्ष- इस प्रकार से ईसबगोल की खेती एक फायदे का सौदा है। अगर आपको पारंपरिक खेती में कुछ ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है तो आप इसकी खेती कर सकते हैं। इसकी सबसे खास बात है कि इसकी खेती में ज्यादा लागत नहीं आती हैं।
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