कपास की खेती कैसे करें? Kapas Ki Kheti Kaise Karen?

कपास की खेती कैसे करें? (Kapas Ki Kheti Kaise Karen)

रेशे वाली फसलों में कपास का प्रमुख स्थान है। सूती कपड़ा बनाने का एकमात्र वस्तु कपास ही है। कपास से मानव के द्वारा विभिन्न प्रकार के उपयोग में आने वाले सर्दी-गर्मी के कपड़े बनाए जाते हैं। रेशा निकाल देने के बाद इसके बीज की खाली बनाई जाती है। कपास के बीज को बिनौला कहते हैं, जो दुधारू पशुओं का मुख्य आहार है।

कपास की खाली का उपयोग खेत में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है। कपास की खाली में 6% नाइट्रोजन, 3% फास्फोरस व 2% पोटाश पाया जाता है। विश्व में कपास पैदा करने वाले देश अमेरिका, रूस, ब्राज़ील, मिश्र, टर्की, पाकिस्तान तथा भारत प्रमुख है। उत्पादन क्षेत्र की दृष्टि से देखे तो भारत का विश्व में पहला स्थान है।

कपास का वैज्ञानिक नाम Gossypium है, एवं यह Mallows परिवार से संबद्ध रखती है। अँग्रेजी में कपास को Cotton (कॉटन) कहा जाता है।

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कपास की किस्में

कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) के लिए अनेक प्रकार की किस्में पाई जाती है। जो इस प्रकार है-

देसी कपास

R.G. 8- यह किस्म देसी कपास की सबसे अच्छी क़िस्मों में से एक मानी जाती है। इस किस्म के पौधे माध्यम आकार के होते है। साथ ही इसके टिंडों का आकार दीर्घवृताकार जैसा होता है। यह सबसे तेज पककर तैयार होने वाली कपास के फसल की किस्म है।

R.G. 18- इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि इसके पौधे कभी जड़ से नहीं उखड़ते है। साथ ही इसकी उपज भी काफी अच्छी होती है, एक हेक्टेयर में इसका औसत उत्पादन तकरीबन 25 क्विंटल तक होता है। इसके पौधों की ऊंचाई 4-5 फीट के मध्य होती है।

RJ.D.H. 9- इसके पौधों की ऊंचाई 4.5-5 फीट के मध्य होती है। देसी कपास के पौधों में इसके पौधे सबसे ज्यादा हरे होते हैं। साथ ही इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 28-30 क्विंटल तक आँका गया है। यह किस्म 5-6 महीनों के समय में पककर तैयार हो जाती है।

R.G. 542- राजस्थान के उत्तरी हिस्से में इस किस्म की कपास सबसे ज्यादा बोई जाती है। इसके पौधे ऊंचाई में 5 फीट तक होते हैं। साथ ही इसके टिंडों का वजन तकरीबन 3.2 ग्राम तक होता है। यह किस्म 30-32 क्विंटल/हेक्टेयर का उत्पादन देती है। फसल पकने के बाद इस किस्म की कपास सबसे कम झड़ती है।

H.D. 123- कपास के उत्पादन में यह किस्म अच्छा परिणाम देती है। इसकी उत्पादना क्षमता प्रति हेक्टेयर तकरीबन 25-30 क्विंटल तक रहती है।

अमेरिकन कपास

राज. एच.एच. 16- इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 130-150 सेमी. के मध्य होती है। साथ ही इसकी पत्तियाँ मध्य आकार की और हल्के हरे रंग की होती है। इसका टिंडा 5 ग्राम तक वजनी होता है, इस कारण इसकी पैदावार काफी अच्छी होती है। यह 6 महीनों में पककर तैयार हो जाती है, जिस कारण इस फसल पर गेंहू की फसल आसानी से बोई जा सकती है।

बिकानेरी नरमा- इसके टिंडे 2 ग्राम के होते हैं, लेकिन पौधे पर टिंडों की मात्रा काफी होती है। इस किस्म के पौधों को तैयार होने में 6-7 महीने का समय लगता है। इसके पौधे मध्यम आकार के होते हैं, एवं इसके फूल हल्के पीले रंग के होते हैं।

आरएस 875- इस किस्म के पौधे काफी छोटे आकार के होते हैं। औसतन पौधों की ऊंचाई 120 सेमी. के आसपास होती है। इसके पौधे की पत्तियाँ चौड़ी और गहरे हरे रंग की होती है। इस कारण इसके पौधे दूर से हरे दिखाई देते हैं। इसके टिंडे का आकार 4-5 ग्राम होता है। यह जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्म है।

आरएस 810- इसके पौधे आरएस 875 से थोड़े बड़े होते हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं, साथ ही टिंडे का औसत आकार 3 ग्राम होता है। तकरीबन 170 दिन में पककर तैयार होने वाली यह किस्म, 25 क्विंटल/हेक्टेयर की उपज देती है।

आरएस 2013- 125-130 सेमी. ऊंचाई वाले इस किस्म के पौधों की पत्तियाँ मध्यम आकार और हल्के रंग की होती है। अन्य क़िस्मों की तुलना में आरएस 2013 में रोगों से लड़ने की क्षमता काफी ज्यादा होती है, खासकर सूँडी से। अत्यधिक सिंचाई वाले क्षेत्र में यह काफी अच्छा परिणाम देती है।

आरएस टी 9- आरएस टी 9 किस्म के पौधों की पत्तियाँ हल्के हरे रंग की और फूल पीले रंग के होते हैं। इसके अलावा टिंडो का औसत वजन 3.6 ग्राम होता है। यह अधिक समय लेकर तैयार होने वाली किस्म है। प्रति हेक्टेयर बिजाई के लिए 15-20 किलो बीज पर्याप्त रहता है।

गंगानगर अगेती- अन्य अमेरिकी क़िस्मों की तुलना में इसके पौधे जल्दी पककर तैयार होते हैं। इसके पौधों की पत्तियाँ गहरे हरे रंग की होती है। आकार में 5 फीट तक बढ़ने वाले पौधे 6 महीनों में पककर तैयार हो जाते हैं। एक हेक्टेयर में इससे 25 क्विंटल तक कपास का उत्पादन किया जा सकता है।

बी.टी.

आजकल ज़्यादातर किसान बीटी क़िस्मों का ही उपयोग करते हैं, क्योंकि इस किस्म के पौधों में रोगों से लड़ने की क्षमता काफी अधिक होती है। साथ ही इस किस्म के पौधों को कम पानी की जरूरत होती है, जिस कारण शुष्क क्षेत्र में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।

बायोसीड 6588 बीजी-II- 6588 अधिक उपज देने वाली बीटी किस्म है। इसके पौधों की ऊंचाई 150 सेमी. से ज्यादा होती है। जिस कारण चुगाई के समय नीचे झुकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कपास का पौधों में पड़ने वाली पत्तामरोड़ बीमारी से इसके लड़ने की क्षमता काफी अधिक है। इसकी औसत पैदावार 25-30 क्विंटल/हेक्टेयर के आसपास रहती है।

बायोसीड बंटी बीजी- कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) में इस बीटी की इस किस्म का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। यह 6588 से मिलती-जुलती किस्म है, परंतु इसकी औसत पैदावार 22-26 क्विंटल/हेक्टेयर है।

RCH 650 बीजी- इसके टिंडों का वजन तकरीबन 5 ग्राम तक होता है। इसकी औसत पैदावार 25-27 क्विंटल/हेक्टेयर तक होती है।

एमआरसीएच-6304 बीजी- बीटी की अन्य क़िस्मों की तरह यह भी शानदार परिणाम देने वाली एक किस्म है। इसकी पत्तियाँ हरी और चौड़ी होती है। 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देने वाली यह किस्म बीटी की सबसे अच्छी क़िस्मों में गिनी जाती है।

एमआरसीएच 6025- यह तकरीबन 26-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देने वाली बीटी की किस्म है। 160-170 दिनों में पककर तैयार होने वाली यह किस्म अच्छा परिणाम देती है।

इसके अलावा आरसीएच 314 बीजी, आरसीएच 134 बीजी, जेकेसीएच 1947, एनईसीएच-6 और MRC-7017 बीजी भी बीटी की मुख्य किस्में हैं। बीटी की अन्य क़िस्मों की तरह इनमें भी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक है। इन सभी क़िस्मों से औसतन 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत पैदावार होती है।

कपास की खेती कैसे करें? (Kapas Ki Kheti Kaise Karen)

जलवायु

कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) ऊष्ण जलवायु में परिपक्व होने वाली फसल है। इसके उत्पादन के लिए औसतन 20-30 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। इसके गुलर बनते समय गर्म मौसम की आवश्यकता पड़ती है। इस समय दिन का तापमान 25-35 डिग्री होना चाहिए।

कपास के पौधों को उगने के लिए औसतन 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। टिंडों के विकास के समय दिन का मौसम गर्म और रात का मौसम ठंडा होना चाहिए। कम से कम 60 सेमी. और औसतन 100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) सबसे उत्तम होती है।

मृदा

कपास की अच्छी खेती के लिए जल निकासी वाली काली मृदा सबसे उपयुक्त होती है। बलुई, क्षारीय और जलमग्न वाली मृदा में कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) करना थोड़ा मुश्किल है। कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5-8 के मध्य होना चाहिए।

हालांकि बलुई मिट्टी में भी कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) की जा सकती है। लेकिन इसके लिए अच्छी क़िस्मों का चयन करना होगा। इसकी खेती के लिए उपयुक्त पीएच मान 5.5 से 7.0 होता है। आजकल बाज़ार में मौजूद कपास की किस्में इस प्रकार की खेती के लिए अनुमति देती है।

खेत की तैयारी

खेती को तैयार करने से पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत में पानी इकट्ठा न हो। खेत तैयार करते समय अच्छे से जुताई करनी चाहिए, जिसके लिए हैरो का प्रयोग करना चाहिए। आप अपने क्षेत्र में उपयोग होने वाले कृषि यंत्रों का उपयोग कर सकते हैं। खेत तैयार उसी समय करें जब मिट्टी में नमी की मात्रा अच्छी हो।

खाद एवं उर्वरक

कपास का अच्छा उत्पादन पाने के लिए खेत में 35-40 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद व कम्पोस्ट का उपयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त 60 Kg नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की 40 Kg की पूरी मात्रा बीज की बुवाई के समय खेत में डालनी चाहिए। बाकी बची आधी नाइट्रोजन 60 दिन के बाद ट्रोप ड्रेसिंग के माध्यम से डालनी चाहिए।

कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) में बुवाई से पहले 25-30 टन गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर में अच्छे से जुताई कर मिला देना चाहिए। इसके अलावा नाइट्रोजन को अलग-अलग क़िस्मों के हिसाब से उपयोग करना चाहिए। अमेरिकन और बीटी के लिए 75 किलोग्राम और देसी के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन उत्तम रहती है।

बीज की बुआई

कपास के बीजों पर छोटे-छोटे टोपे पाए जाते हैं, जिस कारण यह आपस में चिपके हुए होते हैं और बीजों का अंकुरण भी कम होता है। इस समस्या को दूर करने के लिए कपास के बीज को 10-12 घंटों तक पानी में भिगोया जाता है। पानी से निकालने के बाद राख़ और मिट्टी से रगड़ कर साफ किया जाता है।

कई किसान इसके लिए रसायन का भी उपयोग करते हैं। इसके लिए सल्फ्यूरिक अम्ल और ज़िंक क्लोराइड का उपयोग किया जाता है। बीज जनित रोगों के बचाव के लिए एग्रोसन या थाइस्म तथा कैप्टान और बाविस्टन के 2 ग्राम पाउडर को एक किलोग्राम बीजों में मिलकर उपचरित करते हैं।

सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्र में कपास की बुआई मार्च से मई तक की जाती है। अमेरिकन क़िस्मों को 15 अप्रैल तथा देसी क़िस्मों की 15 मई तक बुआई की जाती है। अमेरिकन क़िस्मों में प्रत्येक कतार की दूरी 50 सेमी. रखनी चाहिए। साथ में पौधों की दूरी 45 सेमी. रखनी चाहिए।

बीज दर

देसी कपास- 12-15 Kg/Hec

अमेरिकन कपास- 18-20 Kg/Hec

बीटी कपास- 5 Kg/Hec

सिंचाई

कपास की खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। मृदा में नमी की कमी के कारण उत्पादन में भारी कमी आती है। कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) में पहली सिंचाई बुआई से 20-30 दिन बाद करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई गुलट तथा फूल आते समय करनी चाहिए। खेत में जल का ठहराव हानिकारक होता है।

बुवाई के बाद कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) में 6 सिंचाई आवश्यक होती है। इस बात का खासकर ध्यान रखें कि आधे अक्टूबर के बाद सिंचाई नहीं करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में अत्यधिक बारिश होने पर सिंचाई पर थोड़ा लगाम लगाना चाहिए। अन्यथा ज्यादा सिंचाई से पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँच सकता है।

खरपतवार

पौधों की बुआई से 25-30 दिनों के अंदर निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। दूसरी निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई से 10-12 दिन के बाद करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए 1 किलोग्राम बेसलिन सक्रिय तत्व की मात्रा एक हेक्टेयर की दर से लेकर बुआई पूर्व मृदा में हैरो द्वारा डाली जाती है।

इसके अलावा पहली सिंचाई के बाद जब जमीन हल्की सूख जाती है, तब कसिए की सहायता से कचरे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए। इसके बाद समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। मानसून की बारिश के बाद सबसे ज्यादा खरपतवार पैदा होता है। इसलिए आप बाजार में मिलने वाली स्प्रे की सहायता से इनको नियंत्रित कर सकते हैं।

चुगाई/चुनाई

कपास की चुगाई लगभग सितंबर महीने में शुरू हो जाती है। लेकिन कुछ जगहों पर इसकी शुरुआत अक्टूबर में होती है। जब पौधे के 40% टिंडे खिल जाए, तब ही चुगाई करनी चाहिए। साथ ही टिंडे के पूरे खिलने पर ही कपास निकालनी चाहिए, क्योंकि कच्चे टिंडे की चुगाई कपास की कीमत पर प्रभाव डालती है।

कपास की चुगाई बहुत ही सावधानीपूर्वक करनी चाहिए। नीचे से ऊपर की तरफ चुगाई करने पर कपास में कचरे के मिलने का खतरा कम रहता है। जिस कपड़े में चुगाई की जाती है, उसे बिल्कुल साफ रखना चाहिए। सुबह की ओस खत्म होने के बाद की गई चुगाई, कपास का अच्छा दाम देती है।

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